Monday, September 14, 2015

another one by papa



आओ युग साथ चलो
तुम्हें शब्दों परे की बात बताता हूँ।
जहां तुम आये हो ना
वहाँ जीवन जीने के जतन करते हैं सब
तुम जीना भी और संजोना भी।
यहाँ सीखने की ललक कैद भी हो जाती है,
तुम एकलव्य हो
देखकर-ध्यान-ध्येय-धर्म-धनुर्धर बनना।

रिश्तों की मर्यादा रखना।
कहा करना मन की बात...
और हाँ देखो टहलते हुए दूर ना जाना।
तुम बिन कौन भला हमारा।
डरना नहीं रंगों से
अपने आचरण में
सब रंग भरना।
इकहरा नहीं
दोहरा ही रहना
ताकि सबको दिखो और
छुपना न पड़े।

जीवन जीना बाँटकर।
संजोना रिश्ते
बरकत वाले।
और अँगुली थाम चलना भी
चलाना भी।

शब्दों परे की बातें हम यूँ ही
टहलते हुए किया करेंगे।

No comments:

Post a Comment