Monday, September 14, 2015

papa wrote a poem for you when you were few days old

शब्दों से परे की बात है जो मेरे लिए
वो तू अपनी नर्म मुठ्ठी में दबाये बैठा है।
मेरी हथेली में शब्द मेरे भाग्य के
पिरोये जाता है तू।
तू युग सौंपता है और
ज़रा सा भी दंभ नहीं।
अहि सही कहते के
सत्य तो वही जिसका संकेत तुम करो
ये बचपना अनजान नहीं
सब जानता है।
मानवीय नहीं बस
दैविक सब।
तुहारी पलकें-आँखें
मध्धम-मध्धम बोलना बुलबुलों से
और हमारा जीवन दिखा देना हमें।

तेरी मुट्ठी का जादू
देख
मेरे सर चढ़ बोलता है।
पर शब्दों परे की बात कही नहीं जाती।

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